पेड़ मुझे हसरत से देखा करते थे
मैं जंगल में पानी लाया करता था
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अजीब ख़्वाब था उस के बदन में काई थी
मैं कि काग़ज़ की एक कश्ती हूँ
कुछ ज़रूरत से कम किया गया है
तू ने क्या क़िंदील जला दी शहज़ादी
सहरा से हो के बाग़ में आया हूँ सैर को
इस एक डर से ख़्वाब देखता नहीं
इक हवेली हूँ उस का दर भी हूँ
तमाम नाख़ुदा साहिल से दूर हो जाएँ
ये एक बात समझने में रात हो गई है
आसमाँ और ज़मीं की वुसअत देख
चेहरा देखें तेरे होंट और पलकें देखें
दास्ताँ हूँ मैं इक तवील मगर