आसमाँ और ज़मीं की वुसअत देख
मैं इधर भी हूँ और उधर भी हूँ
Anwar Masood
Parveen Shakir
Rahat Indori
Jaun Eliya
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Mohsin Naqvi
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Wasi Shah
Habib Jalib
Allama Iqbal
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1420) Peoples Rate This
मैं जंगलों की तरफ़ चल पड़ा हूँ छोड़ के घर
चेहरा देखें तेरे होंट और पलकें देखें
इस एक डर से ख़्वाब देखता नहीं
पराई आग पे रोटी नहीं बनाऊँगा
बता ऐ अब्र मुसावात क्यूँ नहीं करता
इस लिए रौशनी में ठंडक है
इक तिरा हिज्र दाइमी है मुझे
ये एक बात समझने में रात हो गई है
तेरा चुप रहना मिरे ज़ेहन में क्या बैठ गया