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अजीब ख़्वाब था उस के बदन में काई थी - तहज़ीब हाफ़ी कविता - Darsaal

अजीब ख़्वाब था उस के बदन में काई थी

अजीब ख़्वाब था उस के बदन में काई थी

वो इक परी जो मुझे सब्ज़ करने आई थी

वो इक चराग़-कदा जिस में कुछ नहीं था मिरा

जो जल रही थी वो क़िंदील भी पराई थी

न जाने कितने परिंदों ने इस में शिरकत की

कल एक पेड़ की तक़रीब-ए-रू-नुमाई थी

हवाव आओ मिरे गाँव की तरफ़ देखो

जहाँ ये रेत है पहले यहाँ तराई थी

किसी सिपाह ने ख़ेमे लगा दिए हैं वहाँ

जहाँ पे मैं ने निशानी तिरी दबाई थी

गले मिला था कभी दुख भरे दिसम्बर से

मिरे वजूद के अंदर भी धुँद छाई थी

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In Hindi By Famous Poet Tahzeeb Hafi. is written by Tahzeeb Hafi. Complete Poem in Hindi by Tahzeeb Hafi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.