मुझ सा अंजान किसी मोड़ पे खो सकता है
हादसा कोई भी इस शहर में हो सकता है
Parveen Shakir
Wasi Shah
Anwar Masood
Javed Akhtar
Rahat Indori
Jaun Eliya
Habib Jalib
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Gulzar
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(613) Peoples Rate This
सतह-ए-दरिया का ये सफ़्फ़ाक सुकूँ है धोका
मैं कहाँ और कहाँ शाएरी मैं ने तो फ़क़त
चमन इतना ख़िज़ाँ-आसार पहले कब हुआ था
मह-ओ-अंजुम ने क़बा की तो तुम्हारे लिए की
फिर उस की याद ने दस्तक दिल-ए-हज़ीं पर दी
तिरी गली में गए कितने माह ओ साल हुए
बहुत से सैल-ए-हवादिस की ज़द पे बह गए हैं
बहार अब के जो गुज़री तो फिर न आएगी
मैं जिन गलियों में पैहम बरसर-ए-गर्दिश रहा हूँ
हम अपने आप से कितने ज़ियादा हैं
ला-यख़ुल