मैं कहाँ और कहाँ शाएरी मैं ने तो फ़क़त
मज्लिस-ए-शेर बपा की तो तुम्हारे लिए की
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मुझ सा अंजान किसी मोड़ पे खो सकता है
बहार अब के जो गुज़री तो फिर न आएगी
मैं जिन गलियों में पैहम बरसर-ए-गर्दिश रहा हूँ
फिर उस की याद ने दस्तक दिल-ए-हज़ीं पर दी
हम अपने आप से कितने ज़ियादा हैं
तिरी गली में गए कितने माह ओ साल हुए
ये तय हुआ है कि शेर ओ अदब के पैमाने
मह-ओ-अंजुम ने क़बा की तो तुम्हारे लिए की
चमन इतना ख़िज़ाँ-आसार पहले कब हुआ था
सतह-ए-दरिया का ये सफ़्फ़ाक सुकूँ है धोका
ला-यख़ुल