मैं जिन गलियों में पैहम बरसर-ए-गर्दिश रहा हूँ
मैं उन गलियों में इतना ख़ार पहले कब हुआ था
Allama Iqbal
Anwar Masood
Mir Taqi Mir
Habib Jalib
Mohsin Naqvi
Wasi Shah
Faiz Ahmad Faiz
Gulzar
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(585) Peoples Rate This
बहार अब के जो गुज़री तो फिर न आएगी
फिर उस की याद ने दस्तक दिल-ए-हज़ीं पर दी
मुझ सा अंजान किसी मोड़ पे खो सकता है
तिरी गली में गए कितने माह ओ साल हुए
इसे मैं और ये मेरा असा ही तय करेगा
ला-यख़ुल
मैं कहाँ और कहाँ शाएरी मैं ने तो फ़क़त
मह-ओ-अंजुम ने क़बा की तो तुम्हारे लिए की
हम अपने आप से कितने ज़ियादा हैं
ये तय हुआ है कि शेर ओ अदब के पैमाने
सतह-ए-दरिया का ये सफ़्फ़ाक सुकूँ है धोका