बहार अब के जो गुज़री तो फिर न आएगी
बिछड़ने वाले बिछड़ते समय ये कह गए हैं
Rahat Indori
Gulzar
Parveen Shakir
Javed Akhtar
Habib Jalib
Jaun Eliya
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Mir Taqi Mir
Ahmad Faraz
Wasi Shah
Mohsin Naqvi
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Sharabi Poetry
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मुझ सा अंजान किसी मोड़ पे खो सकता है
इसे मैं और ये मेरा असा ही तय करेगा
फिर उस की याद ने दस्तक दिल-ए-हज़ीं पर दी
ला-यख़ुल
मैं जिन गलियों में पैहम बरसर-ए-गर्दिश रहा हूँ
चमन इतना ख़िज़ाँ-आसार पहले कब हुआ था
मह-ओ-अंजुम ने क़बा की तो तुम्हारे लिए की
हम अपने आप से कितने ज़ियादा हैं
ये तय हुआ है कि शेर ओ अदब के पैमाने
मैं कहाँ और कहाँ शाएरी मैं ने तो फ़क़त
सतह-ए-दरिया का ये सफ़्फ़ाक सुकूँ है धोका