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मुझ सा अंजान किसी मोड़ पे खो सकता है - तहसीन फ़िराक़ी कविता - Darsaal

मुझ सा अंजान किसी मोड़ पे खो सकता है

मुझ सा अंजान किसी मोड़ पे खो सकता है

हादसा कोई भी इस शहर में हो सकता है

सतह-ए-दरिया का ये सफ़्फ़ाक सुकूँ है धोका

ये तिरी नाव किसी वक़्त डुबो सकता है

ख़ुद कुआँ चल के करे तिश्ना-दहानों को ग़रीक़

ऐसा मुमकिन है मिरी जान ये हो सकता है

बे-तरह गूँजता है रूह के सन्नाटे में

ऐसे सहरा में मुसाफ़िर कहाँ सो सकता है

क़त्ल से हाथ उठाता नहीं क़ातिल न सही

ख़ून से लुथड़े हुए हाथ तो धो सकता है

झूम कर उठता नहीं खुल के बरसना कैसा

कैसा बादल है कि हँसता है न रो सकता है

जुज़ मिरे रिश्ता-ए-अनफ़ास-ए-गिरह-गीर में कौन

गुहर-ए-अश्क-ए-शरर-बार पिरो सकता है

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In Hindi By Famous Poet Tahseen Firaqi. is written by Tahseen Firaqi. Complete Poem in Hindi by Tahseen Firaqi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.