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ये आँख नम थी ज़बाँ पर मगर सवाल न था - ताहिरा जबीन तारा कविता - Darsaal

ये आँख नम थी ज़बाँ पर मगर सवाल न था

ये आँख नम थी ज़बाँ पर मगर सवाल न था

हम अपनी ज़ात में गुम थे कोई ख़याल न था

सजा लिया है हथेली पे हम ने उस का नाम

इस लिए तो बिछड़ जाने का मलाल न था

अगरचे मो'तबर ठहरे थे हम ज़माने में

हमारे पास तो ऐसा कोई कमाल न था

उसी के साथ थे हम उस से बे-ख़बर रह कर

अगरचे राब्ता उस से कोई बहाल न था

तिरे ही नाम पे ये ज़िंदगी कटी सारी

अगरचे तेरा कभी भी हमें विसाल न था

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In Hindi By Famous Poet Tahira Jabeen Tara. is written by Tahira Jabeen Tara. Complete Poem in Hindi by Tahira Jabeen Tara. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.