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में न कहता था कि शहरों में न जा यार मिरे - ताहिर फ़राज़ कविता - Darsaal

में न कहता था कि शहरों में न जा यार मिरे

में न कहता था कि शहरों में न जा यार मिरे

सोंधी मिट्टी ही में होती है वफ़ा यार मिरे

कोई टूटे हुए ख़्वाबों से कहाँ मिलता है

हर जगह दर्द का बिस्तर न लगा यार मिरे

सिलसिला फिर से जुड़ा है तो जुड़ा रहने दे

दिल के रिश्तों को तमाशा न बना यार मिरे

अपनी चाहत के शब-ओ-रोज़ मुकम्मल कर ले

जा ये सूरज भी तिरे नाम किया यार मिरे

तुझ से मिलता हूँ तो रिश्ता कोई याद आता है

सिलसिला मुझ से ज़ियादा न बढ़ा यार मिरे

ऐसा लगता है कि कुछ टूट रहा है मुझ में

छोड़ के तू मुझे इस वक़्त न जा यार मिरे

ख़ुश-नसीबी से ये साअ'त तिरे हाथ आई है

आसमाँ झुकने लगा हाथ बढ़ा यार मिरे

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In Hindi By Famous Poet Tahir Faraz. is written by Tahir Faraz. Complete Poem in Hindi by Tahir Faraz. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.