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अब के बरस होंटों से मेरे तिश्ना-लबी भी ख़त्म हुइ - ताहिर फ़राज़ कविता - Darsaal

अब के बरस होंटों से मेरे तिश्ना-लबी भी ख़त्म हुइ

अब के बरस होंटों से मेरे तिश्ना-लबी भी ख़त्म हुइ

तुझ से मिलने की ऐ दरिया मजबूरी भी ख़त्म हुई

कैसा प्यार कहाँ की उल्फ़त इश्क़ की बात तो जाने दो

मेरे लिए अब उस के दिल से हमदर्दी भी ख़त्म हुई

सामने वाली बिल्डिंग में अब काम है बस आराइश का

कल तक जो मिलती थी हमें वो मज़दूरी भी ख़त्म हुई

जेल से वापस आ कर उस ने पांचों वक़्त नमाज़ पढ़ी

मुँह भी बंद हुए सब के और बदनामी भी ख़त्म हुई

जिस की जल-धारा से बस्ती वाले जीवन पाते थे

रस्ता बदलते ही नद्दी के वो बस्ती भी ख़त्म हुई

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In Hindi By Famous Poet Tahir Faraz. is written by Tahir Faraz. Complete Poem in Hindi by Tahir Faraz. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.