तुम हमारे ख़ून की क़ीमत न पूछो
इस में अपने ज़र्फ़ का अर्सा रखा है
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जो तिरे इंतिज़ार में गुज़रे
मुझ को भी हक़ है ज़िंदगानी का
बढ़ रहा हूँ ख़याल से आगे
रहता है ज़ेहन ओ दिल में जो एहसास की तरह
सोच अपनी ज़ात तक महदूद है
मैं तिरे हिज्र की गिरफ़्त में हूँ
मौसम-ए-गुल बहार के दिन थे
इन बातों पर मत जाना जो आम हुईं
ये जो शीशा है दिल-नुमा मुझ में
इक वहशत सी दर आई है आँखों में
शहर की इस भीड़ में चल तो रहा हूँ