मुझ को भी हक़ है ज़िंदगानी का
मैं भी किरदार हूँ कहानी का
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ख़्वाहिशों की बादशाही कुछ नहीं
तासीर नहीं रहती अल्फ़ाज़ की बंदिश में
रहता है ज़ेहन ओ दिल में जो एहसास की तरह
तुम हमारे ख़ून की क़ीमत न पूछो
मैं तिरे हिज्र में जो ज़िंदा हूँ
जो तिरे इंतिज़ार में गुज़रे
हर दर्द की दवा भी ज़रूरी नहीं कि हो
इन बातों पर मत जाना जो आम हुईं
हर्फ़
मैं उस की मोहब्बत से इक दिन भी मुकर जाता
तीरगी की क्या अजब तरकीब है ये