फ़क़त तुम ही नहीं नाराज़ मुझ से जान-ए-जानाँ
मिरे अंदर का इंसाँ तक ख़फ़ा है इंतिहा है
Javed Akhtar
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Gulzar
Anwar Masood
Rahat Indori
Ahmad Faraz
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Wasi Shah
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1046) Peoples Rate This
आँखों में है कैसा पानी बंद है क्यूँ आवाज़
बुझ रही है आँख ये जिस्म है जुमूद में
मुझे वो छोड़ कर जब से गया है इंतिहा है
हर एक रस्ता-ए-पायाब से निकलना है
उसे भी पर्दा-ए-तहज़ीब को गिराना है
रंग क्या अजब दिया मेरी बेवफ़ाई को
नहीं है रहना उसे भी बहार में 'ताहिर'