फ़ुरात-ए-चश्म पे है कर्बला की तुग़्यानी
दरून-ए-कूफ़ा-ए-दिल ईद करने आया हूँ
Mir Taqi Mir
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Anwar Masood
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Habib Jalib
Rahat Indori
Jaun Eliya
Wasi Shah
Ahmad Faraz
Parveen Shakir
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(705) Peoples Rate This
तन्हा कर के मुझ को सलीब-ए-सवाल पे छोड़ दिया
पहाड़ों को बिछा देते कहीं खाई नहीं मिलती
क्या शय है खींच लेती है शब को सर-ए-फ़लक
लहरों में भँवर निकलेंगे मेहवर न मिलेगा
लब-ए-मंतिक़ रहे कोई न चश्म-लन-तरानी हो
वही बे-लिबास क्यारियाँ कहीं बेल बूटों के बल नहीं
अव्वल वही सैराब था सानी भी वही था
इक परेशानी अलग थी और पशेमानी अलग
घने अरमान गाढ़ी आरज़ू करने से मिलता है
सितम-ज़रीफ़ी की सूरत निकल ही आती है
मेहवर पे भी गर्दिश मिरी मेहवर से अलग हो