जहान-ए-दिल में सन्नाटा बहुत है
जहान-ए-दिल में सन्नाटा बहुत है
समुंदर आज कल प्यासा बहुत है
ये माना वो शजर सूखा बहुत है
मगर उस में अभी साया बहुत है
फ़रिश्तों में भी जिस के तज़्किरे हैं
वो तेरे शहर में रुस्वा बहुत है
ब-ज़ाहिर पुर-सुकूँ है सारी बस्ती
मगर अंदर से हंगामा बहुत है
उसे अब भूल जाना चाहता हूँ
कभी मैं ने जिसे चाहा बहुत है
वो पत्थर क्या किसी के काम आता
मगर सब ने उसे पूजा बहुत है
मिरा घर तो उजड़ जाएगा लेकिन
तुम्हारे घर को भी ख़तरा बहुत है
मिरा दुश्मन मिरे अशआर सुन कर
न जाने आज क्यूँ रोया बहुत है
(658) Peoples Rate This