ज़माने से अलग थी मेरी दुनिया
मैं उस की दौड़ में शामिल नहीं था
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उतर गया है रग-ओ-पय में ज़ाइक़ा उस का
Dimensions
अपनी साल-गिरह पर
न देखें तो सुकूँ मिलता नहीं है
क़िस्सा-ए-शब
देव-मालाएँ सच्ची होती हैं
अजीब सुब्ह थी दीवार ओ दर कुछ और से थे
जिस ने इंसाँ से मोहब्बत ही नहीं की 'ताबिश'
शायरों का जब्र
कब खुलेगा कि फ़लक पार से आगे क्या है
अजब यक़ीन सा उस शख़्स के गुमान में था