न देखें तो सुकूँ मिलता नहीं है
हमें आख़िर वो क्यूँ मिलता नहीं है
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ये शहर आफ़तों से तो ख़ाली कोई न था
अजब यक़ीन सा उस शख़्स के गुमान में था
यक़ीं से जो गुमाँ का फ़ासला है
कोई इज़हार कर सकता है कैसे
कई पड़ाव थे मंज़िल की राह में 'ताबिश'
हम उस धरती के बाशिंदे थे 'ताबिश'
हमारा डूबना मुश्किल नहीं था
Dimensions
कब खुलेगा कि फ़लक पार से आगे क्या है
ज़माने से अलग थी मेरी दुनिया