कई पड़ाव थे मंज़िल की राह में 'ताबिश'
मिरे नसीब में लेकिन सफ़र कुछ और से थे
Javed Akhtar
Mohsin Naqvi
Jaun Eliya
Gulzar
Wasi Shah
Parveen Shakir
Rahat Indori
Allama Iqbal
Faiz Ahmad Faiz
Habib Jalib
Mir Taqi Mir
Anwar Masood
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(1145) Peoples Rate This
शायरों का जब्र
हम उस धरती के बाशिंदे थे 'ताबिश'
कोई इज़हार कर सकता है कैसे
ज़माने से अलग थी मेरी दुनिया
न देखें तो सुकूँ मिलता नहीं है
यक़ीं से जो गुमाँ का फ़ासला है
अजीब सुब्ह थी दीवार ओ दर कुछ और से थे
बे-घरी
एक बुज़ुर्ग शायर परिंदे का तजरबा
क्या कहूँ वो किधर नहीं रहता
ये शहर आफ़तों से तो ख़ाली कोई न था
Dimensions