कब खुलेगा कि फ़लक पार से आगे क्या है
किस को मालूम कि दीवार से आगे क्या है
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न देखें तो सुकूँ मिलता नहीं है
अजब यक़ीन सा उस शख़्स के गुमान में था
शायरों का जब्र
एक बुज़ुर्ग शायर परिंदे का तजरबा
अजीब सुब्ह थी दीवार ओ दर कुछ और से थे
क्या कहूँ वो किधर नहीं रहता
यक़ीं से जो गुमाँ का फ़ासला है
हमारा डूबना मुश्किल नहीं था
Dimensions
उतर गया है रग-ओ-पय में ज़ाइक़ा उस का