हम उस धरती के बाशिंदे थे 'ताबिश'
कि जिस का कोई मुस्तक़बिल नहीं था
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न देखें तो सुकूँ मिलता नहीं है
कब खुलेगा कि फ़लक पार से आगे क्या है
हमारा डूबना मुश्किल नहीं था
कहीं से तुम मुझे आवाज़ देती हो
अपनी साल-गिरह पर
यक़ीं से जो गुमाँ का फ़ासला है
उतर गया है रग-ओ-पय में ज़ाइक़ा उस का
सारबान
अजीब सुब्ह थी दीवार ओ दर कुछ और से थे
कोई इज़हार कर सकता है कैसे
ज़माने से अलग थी मेरी दुनिया