अजब यक़ीन सा उस शख़्स के गुमान में था
वो बात करते हुए भी नई उड़ान में था
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कई पड़ाव थे मंज़िल की राह में 'ताबिश'
Dimensions
क़िस्सा-ए-शब
बे-घरी
कहाँ आ गई हो
कब खुलेगा कि फ़लक पार से आगे क्या है
एक बुज़ुर्ग शायर परिंदे का तजरबा
अजीब सुब्ह थी दीवार ओ दर कुछ और से थे
बिल-जब्र
सारबान