छोटी पड़ती है अना की चादर
पाँव ढकता हूँ तो सर खुलता है
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ज़ेर-ए-लब रहा नाला दर्द की दवा हो कर
नफ़स की ज़द पे हर इक शोला-ए-तमन्ना है
'ताबिश' हवस-ए-लज़्ज़त-ए-आज़ार कहाँ तक
टूट कर अहद-ए-तमन्ना की तरह
एक जल्वा ब-सद अंदाज़-ए-नज़र देख लिया
सब ग़म कहें जिसे कि तमन्ना कहें जिसे
बहुत जबीन-ओ-रुख़-ओ-लब बहुत क़द-ओ-गेसू
आग़ाज़-ए-गुल है शौक़ मगर तेज़ अभी से है
मह-ओ-पर्वीं तह-ए-कमंद रहे
बंद-ए-ग़म मुश्किल से मुश्किल-तर खुला
ज़र्रे में गुम हज़ार सहरा