नफ़स की ज़द पे हर इक शोला-ए-तमन्ना है
हवा के सामने किस का चराग़ जलता है
तिरा विसाल तो किस को नसीब है लेकिन
तिरे फ़िराक़ का आलम भी किस ने देखा है
अभी हैं क़ुर्ब के कुछ और मरहले बाक़ी
कि तुझ को पा के हमें फिर तिरी तमन्ना है
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ज़ेर-ए-लब रहा नाला दर्द की दवा हो कर
टूट कर अहद-ए-तमन्ना की तरह
ज़र्रे में गुम हज़ार सहरा
एक जल्वा ब-सद अंदाज़-ए-नज़र देख लिया
आग़ाज़-ए-गुल है शौक़ मगर तेज़ अभी से है
हमा-तन गोश इक ज़माना था
मह-ओ-पर्वीं तह-ए-कमंद रहे
सब ग़म कहें जिसे कि तमन्ना कहें जिसे
हर इक दाग़-ए-दिल शम्अ' साँ देखता हूँ
आईना जब भी रू-ब-रू आया