शौक़ के ख़्वाब-ए-परेशाँ की हैं तफ़्सीरें बहुत
शौक़ के ख़्वाब-ए-परेशाँ की हैं तफ़्सीरें बहुत
दामन-ए-दिल पर उभर आई हैं तस्वीरें बहुत
दोस्तों की बज़्म में कुछ सोच कर लब सी लिए
वर्ना दामान-ए-तसव्वुर में हैं तक़रीरें बहुत
ज़िंदगी तेरे लिए दफ़्तर कहाँ से लाइए
चंद बोसीदा वरक़ हैं और तहरीरें बहुत
ख़्वाहिशें ही ख़्वाहिशें हैं हसरतें ही हसरतें
दिल सा दीवाना सलामत है तो ज़ंजीरें बहुत
बात इतनी है कोई हो तो सज़ावार-ए-सलीब
इस गए-गुज़रे ज़माने में भी ताज़ीरें बहुत
ज़िंदगी की तल्ख़ तर सच्चाइयों का क्या इलाज
यूँ तो अहल-ए-मस्लहत करते हैं तदबीरें बहुत
कारोबार-ए-शौक़ की हासिल हैं वो पसपाइयाँ
जिन पे 'ताबाँ' नाज़ फ़रमाती हैं तक़दीरें बहुत
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