मिलेगा दर्द तो दरमाँ की आरज़ू होगी
मिलेगा दर्द तो दरमाँ की आरज़ू होगी
तमाम उम्र ग़रज़ सिर्फ़ जुस्तुजू होगी
फिर आज दिल से मुख़ातब है शब का सन्नाटा
फिर आज सुब्ह तलक उन की गुफ़्तुगू होगी
जुनूँ का शग़्ल सलामत रफ़ू की फ़िक्र न कर
किसे ख़बर है कि कब फ़ुर्सत-ए-रफ़ू होगी
अभी जलेंगे यहाँ और बे-रुख़ी के चराग़
इस अंजुमन में वफ़ा और सुर्ख़-रू होगी
चलेगी बात जहाँ तेरी कज-अदाई की
मिरी वफ़ा भी तो मौज़ू-ए-गुफ़्तुगू होगी
बचेंगे बर्क़-ए-हवादिस से आशियाँ कब तक
कि तेज़-तर अभी तहरीक-ए-रंग-ओ-बू होगी
मिलेंगे राह में ऐसे ऐसे भी हम-सफ़र 'ताबाँ'
क़दम क़दम जिन्हें मंज़िल की जुस्तुजू होगी
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