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कमाल-ए-बे-ख़बरी को ख़बर समझते हैं - ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ कविता - Darsaal

कमाल-ए-बे-ख़बरी को ख़बर समझते हैं

कमाल-ए-बे-ख़बरी को ख़बर समझते हैं

तिरी निगाह को जो मो'तबर समझते हैं

फ़रोग़-ए-तूर की यूँ तो हज़ार तावीलें

हम इक चराग़-ए-सर-ए-रहगुज़र समझते हैं

लब-ए-निगार को ज़हमत न दो ख़ुदा के लिए

हम अहल-ए-शौक़ ज़बान-ए-नज़र समझते हैं

जनाब-ए-शैख़ समझते हैं ख़ूब रिंदों को

जनाब-ए-शैख़ को हम भी मगर समझते हैं

वो ख़ाक समझेंगे राज़-ए-गुल-ओ-समन 'ताबाँ'

जो रंग-ओ-बू को फ़रेब-ए-नज़र समझते हैं

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In Hindi By Famous Poet Taban Ghulam Rabbani. is written by Taban Ghulam Rabbani. Complete Poem in Hindi by Taban Ghulam Rabbani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.