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जुनूँ ख़ुद-नुमा ख़ुद-निगर भी नहीं - ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ कविता - Darsaal

जुनूँ ख़ुद-नुमा ख़ुद-निगर भी नहीं

जुनूँ ख़ुद-नुमा ख़ुद-निगर भी नहीं

ख़िरद की तरह कम-नज़र भी नहीं

कोई राहज़न का ख़तर भी नहीं

कि दामन में गर्द-ए-सफ़र भी नहीं

यहाँ होश-ओ-ईमाँ सभी लुट गए

मज़ा ये है उन की ख़बर भी नहीं

ग़म-ए-ज़िंदगी इक मुसलसल अज़ाब

ग़म-ए-ज़िंदगी से मफ़र भी नहीं

नज़र मो'तबर है ख़बर मो'तबर

मगर इस क़दर मो'तबर भी नहीं

तिरी अंजुमन मरकज़-ए-आरज़ू

तिरी अंजुमन में गुज़र भी नहीं

कहाँ जाएँ 'ताबाँ' गुनहगार-ए-शौक़

सज़ा भी नहीं दरगुज़र भी नहीं

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In Hindi By Famous Poet Taban Ghulam Rabbani. is written by Taban Ghulam Rabbani. Complete Poem in Hindi by Taban Ghulam Rabbani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.