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हम एक उम्र जले शम-ए-रहगुज़र की तरह - ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ कविता - Darsaal

हम एक उम्र जले शम-ए-रहगुज़र की तरह

हम एक उम्र जले शम-ए-रहगुज़र की तरह

उजाला ग़ैरों से क्या माँगते क़मर की तरह

कहाँ के जैब-ओ-गरेबाँ जिगर भी चाक हुए

बहार आई क़यामत के नामा-बर की तरह

करम कहो कि सितम दिल-दही का हर अंदाज़

उतर उतर सा गया दिल में नेश्तर की तरह

न हादसों की कमी है न शोरिशों की कमी

चमन में बर्क़ भी पलती है बाल-ओ-पर की तरह

न-जाने क्यूँ यहाँ वीरानियाँ बरसती हैं

सभी के घर हैं ब-ज़ाहिर हमारे घर की तरह

ख़ुदा करे कि सदा कारोबार-ए-शौक़ चले

जो बे-नियाज़ हो मंज़िल से इस सफ़र की तरह

बस और क्या कहें रूदाद-ए-ज़िंदगी 'ताबाँ'

चमन में हम भी हैं इक शाख़-ए-बे-समर की तरह

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In Hindi By Famous Poet Taban Ghulam Rabbani. is written by Taban Ghulam Rabbani. Complete Poem in Hindi by Taban Ghulam Rabbani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.