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हुजूम-ए-दर्द का इतना बढ़े असर गुम हो - ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ कविता - Darsaal

हुजूम-ए-दर्द का इतना बढ़े असर गुम हो

हुजूम-ए-दर्द का इतना बढ़े असर गुम हो

मिले वो रात कि जिस रात की सहर गुम हो

मज़ा तो जब है कि आवार्गान-ए-शौक़ के साथ

ग़ुबार बन के चले और रहगुज़र गुम हो

हमारी तरह ख़राब-ए-सफ़र न हो कोई

इलाही यूँ तो किसी का न राहबर गुम हो

चले हैं हम भी चराग़-ए-नज़र जलाए हुए

ये रौशनी भी कहीं राह में अगर गुम हो

तलाश-ए-दोस्त है दिल को मगर ख़ुदा जाने

कहाँ कहाँ ये भटकता फिरे किधर गुम हो

चमन चमन हैं वो नश्व-ओ-नुमा के हंगामे

गुलों को ढूँडने जाए तो ख़ुद नज़र गुम हो

सुख़न की जान है हुस्न-ए-बयाँ मगर 'ताबाँ'

न यूँ कि लफ़्ज़ ही रह जाएँ फ़िक्र-ए-तर गुम हो

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In Hindi By Famous Poet Taban Ghulam Rabbani. is written by Taban Ghulam Rabbani. Complete Poem in Hindi by Taban Ghulam Rabbani. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.