हर मोड़ को चराग़-ए-सर-ए-रहगुज़र कहो
हर मोड़ को चराग़-ए-सर-ए-रहगुज़र कहो
बीते हुए दिनों को ग़ुबार-ए-सफ़र कहो
ख़ूँ-गश्ता आरज़ू को कहो शाम-ए-मय-कदा
दिल की जराहतों को चमन की सहर कहो
हर रहगुज़र पे करता हूँ ज़ंजीर का क़यास
चाहो तो तुम उसे भी जुनूँ का असर कहो
मेरी मता-ए-दर्द यही ज़िंदगी तो है
ना-मो'तबर कहो कि उसे मो'तबर कहो
ये भी उरूज-ए-रंग का इक मो'जिज़ा सही
फूलों की ताज़गी को फ़रोग़-ए-शरर कहो
दानिश-वरान-ए-हाल का 'ताबाँ' है मशवरा
हर मंज़र-ए-जहाँ को फ़रेब-ए-नज़र कहो
(699) Peoples Rate This