ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ
नाम | ग़ुलाम रब्बानी ताबाँ |
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अंग्रेज़ी नाम | Taban Ghulam Rabbani |
जन्म की तारीख | 1914 |
मौत की तिथि | 1993 |
जन्म स्थान | Delhi |
ये मय-कदा है कलीसा ओ ख़ानक़ाह नहीं
ये चार दिन की रिफ़ाक़त भी कम नहीं ऐ दोस्त
यादों के साए हैं न उमीदों के हैं चराग़
उधर चमन में ज़र-ए-गुल लुटा इधर 'ताबाँ'
तबाहियों का तो दिल की गिला नहीं लेकिन
शबाब-ए-हुस्न है बर्क़-ओ-शरर की मंज़िल है
रह-ए-तलब में किसे आरज़ू-ए-मंज़िल है
निखर गए हैं पसीने में भीग कर आरिज़
मेरे अफ़्कार की रानाइयाँ तेरे दम से
मंज़िलें राह में थीं नक़्श-ए-क़दम की सूरत
मैं ने कब दावा-ए-इल्हाम किया है 'ताबाँ'
लब-ए-निगार को ज़हमत न दो ख़ुदा के लिए
किसी के हाथ में जाम-ए-शराब आया है
जुनूँ में और ख़िरद में दर-हक़ीक़त फ़र्क़ इतना है
जनाब-ए-शैख़ समझते हैं ख़ूब रिंदों को
हमारी तरह ख़राब-ए-सफ़र न हो कोई
ग़ुबार-ए-राह चला साथ ये भी क्या कम है
ग़म-ए-ज़िंदगी इक मुसलसल अज़ाब
छटे ग़ुबार-ए-नज़र बाम-ए-तूर आ जाए
बस्तियों में होने को हादसे भी होते हैं
बड़े बड़ों के क़दम डगमगा गए 'ताबाँ'
आँसुओं से कोई आवाज़ को निस्बत न सही
ज़िंदगी दिल पे अजब सेहर सा करती जाए
ये हुजुम-ए-रस्म-ओ-रह दुनिया की पाबंदी भी है
वो रौशनी कि ब-क़ैद-ए-सहर नहीं ऐ दोस्त
वो नाज़ुक सा तबस्सुम रह गया वहम-ए-हसीं बन कर
तुम्हीं बताओ पुकारा है बार बार किसे
तुम्हीं बताओ पुकारा है बार बार किसे
सवाद-ए-ग़म में कहीं गोशा-ए-अमाँ न मिला
शौक़ के ख़्वाब-ए-परेशाँ की हैं तफ़्सीरें बहुत