तू मिल उस से हो जिस से दिल तिरा ख़ुश
तू मिल उस से हो जिस से दिल तिरा ख़ुश
बला से तेरी मैं ना-ख़ुश हूँ या ख़ुश
ख़ुशी तेरी जिसे हर-दम हो दरकार
कोई इस से नहीं होता है ना-ख़ुश
कोई अब के ज़माने में न होगा
इलाही आश्ना से आश्ना ख़ुश
फ़लक के हाथ से ऐ ख़ालिक़-ए-ख़ल्क़
कुइ नहीं आ के दुनिया में रहा ख़ुश
तिरा साया हो जिस पर उस को हरगिज़
न आवे साया-ए-बाल-ए-हुमा ख़ुश
क़फ़स में आह हद ईज़ा है हम को
न आती काश गुलशन की हवा ख़ुश
अगर लावे तू बू उस गुल-बदन की
तो हों तुझ से निहायत ऐ सबा ख़ुश
किया क़त्ल उन ने मुझ को ग़ैर से मिल
हुआ दुश्मन जुदा ख़ुश वो जुदा ख़ुश
नसीहत की थी उन ने मय-कशों को
बहुत मस्तों ने ज़ाहिद को किया ख़ुश
मू-ए-आतिश में जल परवाना ओ शम्अ'
मोहब्बत से मैं उन की हद हुआ ख़ुश
किया चाक ऐ जुनूँ तिरा भला हो
कभू मैं इस गरेबाँ से न था ख़ुश
गया था सैर को ले साक़ी ओ मय
न आई बाग़ की आब-ओ-हवा ख़ुश
किया क़ातिल ने बिस्मिल को मिरे देख
मुझे लगता है इस का लोटना ख़ुश
सुने क्यूँकर वो लब्बैक-ए-हरम को
जिसे नाक़ूस की आए सदा ख़ुश
सताना बे-दिलों के दिल को हर-दम
तुम्हें ऐ दिलबरो आता है क्या ख़ुश
सुमूद ओ क़ाक़ुम ओ संजाब है पश्म
मुझे आता है टूटा बोरिया ख़ुश
सनम के पास से क़ासिद फिरा है
ख़ुदा जाने कि मैं ना-ख़ुश हूँ या ख़ुश
कोई ख़ुश होवे ख़ूबाँ की वफ़ा से
मुझे तो उन की आती है जफ़ा ख़ुश
न छोड़ूँगा कभी मैं बुत-परस्ती
न हो गो मुझ से ऐ 'ताबाँ' ख़ुदा ख़ुश
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