सुन फ़स्ल-ए-गुल ख़ुशी हो गुलशन में आइयाँ हैं
सुन फ़स्ल-ए-गुल ख़ुशी हो गुलशन में आइयाँ हैं
क्या बुलबुलों ने देखो धूमें मचाइयाँ हैं
बीमार हो ज़मीं से उठते नहीं असा बिन
नर्गिस को तुम ने शायद आँखें दिखाइयाँ हैं
देख उस को आइना भी हैरान हो गया है
चेहरे पे जान तेरे ऐसी सफ़ाइयाँ हैं
ख़ुर्शीद उस को कहिए तो जान है वो पीला
गर मह कहूँ तिरा मुँह तो उस पे झाइयाँ हैं
यूँ गर्म यार होना फिर बात भी न कहना
क्या बे-मुरव्वती है क्या बेवफ़ाइयाँ हैं
झमकी दिखा झिझक कर दिल ले के भाग जाना
क्या अचपलाइयाँ हैं क्या चंचलाइयाँ हैं
क़िस्मत में क्या है देखें जीते बचें कि मर जाएँ
क़ातिल से अब तो हम ने आँखें लड़ाइयाँ हैं
दिल आशिक़ों का ले कर फिर यार नहीं ये दिलबर
इन बे-मुरव्वतों की क्या आश्नाइयाँ हैं
फिर मेहरबाँ हुआ है 'ताबाँ' मिरा सितमगर
बातें तिरी किसी ने शायद सुनाइयाँ हैं
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