नमकीं हर्फ़ है मिरा ये फ़सीह
कुल्लो शैइन मिनल-मलीह मलीह
व क़िना रब्बना अज़ाबन्नार
शम्अ' की है हमेशा ये तस्बीह
लमिनल-मा कुल्लो शैइन हय
शर्ब-ए-मय से हुआ है मुझ को सहीह
मिस्लहू लैसा वाहिदुन ग़र्रा
माह-ए-कनआँ भी था अगरचे फ़सीह
जी में आवे सो कह तू 'ताबाँ' को
लैसा मिन फ़ीका शतमना बे-क़बीह