नहीं तुम मानते मेरा कहा जी
नहीं तुम मानते मेरा कहा जी
कभी तो हम भी समझेंगे भला जी
अचम्भा है मुझे बुलबुल कि गुल बिन
क़फ़स में किस तरह तेरा लगा जी
तुम्हारे ख़त के आने की ख़बर सुन
मियाँ साहब निपट मेरा कुढ़ा जी
ज़कात-ए-हुस्न दे मैं बे-नवा हूँ
यही है तुम से अब मेरी सदा जी
किसी के जी के तईं लेता है दुश्मन
मिरा तो ले गया है आश्ना जी
थका मैं सैर कर सारे जहाँ की
मिरा अब सब तरफ़ से मर गया जी
जलाया आ के फिर 'ताबाँ' को तू ने
हमारी जान अब तू भी सदा जी
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