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मरने की मुझ को आप से हैं इज़तिराबियाँ - ताबाँ अब्दुल हई कविता - Darsaal

मरने की मुझ को आप से हैं इज़तिराबियाँ

मरने की मुझ को आप से हैं इज़तिराबियाँ

करता है मेरे क़त्ल को तू क्यूँ शिताबियाँ

मेरा ही ख़ानुमाँ नहीं वीराँ हुआ कोई

बहुतों की की हैं इश्क़ ने ख़ाना ख़राबियाँ

ख़्वान-ए-फ़लक पे नेमत-ए-अलवान है कहाँ

ख़ाली है महर-ओ-माह की दोनों रिकाबियाँ

हरगिज़ ख़ुम-ए-फ़लक में नहीं है शराब-ए-इश्क़

ग़ुंचों की ख़ून-ए-दिल से भरी हैं गुलाबियाँ

हल्क़ों से उस की ज़ुल्फ़ के रुख़्सार है अयाँ

'ताबाँ' जथे में देखो हैं क्या माह-ताबियाँ

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In Hindi By Famous Poet Taban Abdul Hai. is written by Taban Abdul Hai. Complete Poem in Hindi by Taban Abdul Hai. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.