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किसी गुल में नहीं पाने की तू बू-ए-वफ़ा हरगिज़ - ताबाँ अब्दुल हई कविता - Darsaal

किसी गुल में नहीं पाने की तू बू-ए-वफ़ा हरगिज़

किसी गुल में नहीं पाने की तू बू-ए-वफ़ा हरगिज़

अबस अपना दिल ऐ बुलबुल चमन में मत लगा हरगिज़

तबीबों से इलाज-ए-इश्क़ होता है निपट मुश्किल

हमारे दर्द की उन से नहीं होने की दवा हरगिज़

तजा घर एक और सारे बयाबाँ का हुआ वारिस

कोई मजनूँ सा अय्यारा न होगा दूसरा हरगिज़

बहार आई है क्यूँकर अंदलीबें बाग़ में जावें

क़फ़स के दर के तईं करता नहीं सय्याद वा हरगिज़

न थे आशिक़ किसी बे-दाद पर हम जब तलक 'ताबाँ'

हमारे दिल के तईं कुछ दर्द-ओ-ग़म तब तक न था हरगिज़

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In Hindi By Famous Poet Taban Abdul Hai. is written by Taban Abdul Hai. Complete Poem in Hindi by Taban Abdul Hai. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.