ऐ मर्द-ए-ख़ुदा हो तू परस्तार बुताँ का
ऐ मर्द-ए-ख़ुदा हो तू परस्तार बुताँ का
मज़हब में मिरे कुफ़्र है इंकार बुताँ का
लगती वो तजल्ली शरर-ए-संग के मानिंद
मूसी तू अगर देखता दीदार बुताँ का
गर्दन में मिरे तौक़ है ज़ुन्नार के मानिंद
हूँ इश्क़ में अज़-बस-कि गुनहगार बुताँ का
दोनों की टुक इक सैर कर इंसाफ़ से ऐ शैख़
काबे से तिरे गर्म है बाज़ार बुताँ का
दूँ सारी ख़ुदाई को एवज़ उन के मैं 'ताबाँ'
कोई मुझ सा बता दे तू ख़रीदार बुताँ का
(530) Peoples Rate This