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दिल के सहरा में बड़े ज़ोर का बादल बरसा - ताब असलम कविता - Darsaal

दिल के सहरा में बड़े ज़ोर का बादल बरसा

दिल के सहरा में बड़े ज़ोर का बादल बरसा

इतनी शिद्दत से कोई रात मुझे याद आया

जिस से इक उम्र रहा दा'वा-ए-क़ुर्बत मुझ को

हाए उस ने न कभी आँख उठा कर देखा

तो मिरी मंज़िल-ए-मक़्सूद है लेकिन नापैद

मैं तिरी धुन में शब-ओ-रोज़ भटकने वाला

फैल जाता तिरे होंटों पे तबस्सुम की तरह

काश हालात का पहलू कभी हो ऐसा

कितनी शिद्दत से तिरे आरिज़-ओ-लब याद आए

जब सर-ए-शाम उफ़ुक़ पर कोई तारा चमका

अब के इस तौर से आई थी गुलिस्ताँ में बहार

दामन-ए-शाख़ में सूखा हुआ पत्ता भी न था

दास्ताँ ग़म की उसे 'ताब' सुनाते क्यूँ हो

कब रग-ए-संग से ख़ूँ का कभी धारा निकला

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In Hindi By Famous Poet Tab Aslam. is written by Tab Aslam. Complete Poem in Hindi by Tab Aslam. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.