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मुँह जो फ़ुर्क़त में ज़र्द रहता है - तअशशुक़ लखनवी कविता - Darsaal

मुँह जो फ़ुर्क़त में ज़र्द रहता है

मुँह जो फ़ुर्क़त में ज़र्द रहता है

कुछ कलेजे में दर्द रहता है

थी कभी रश्क-ए-महर के आशिक़

धूप का रंग ज़र्द रहता है

किस के सुनते हो रात को नाले

कहते हो सर में दर्द रहता है

कभी पूछा न मेरे कूचे में

कौन सहरा-नवर्द रहता है

शोर है ज़र्द आई है आँधी

क्या मिरा रंग ज़र्द रहता है

याद आती हैं गर्मियाँ तेरी

दिल हमारा भी सर्द रहता है

कहते हो तुझ को देखते हैं हम

बंदा सहरा-नवर्द रहता है

जिस तरफ़ बैठते थे वस्ल में आप

उसी पहलू में दर्द रहता है

कहते हैं दिल की चोट का है फ़साद

मुँह 'तअश्शुक़' जो ज़र्द रहता है

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In Hindi By Famous Poet Taashshuq Lakhnavi. is written by Taashshuq Lakhnavi. Complete Poem in Hindi by Taashshuq Lakhnavi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.