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महफ़िल से उठाने के सज़ा-वार हमीं थे - तअशशुक़ लखनवी कविता - Darsaal

महफ़िल से उठाने के सज़ा-वार हमीं थे

महफ़िल से उठाने के सज़ा-वार हमीं थे

सब फूल तिरे बाग़ थे इक ख़ार हमीं थे

हम किस को दिखाते शब-ए-फ़ुर्क़त की उदासी

सब ख़्वाब में थे रात को बेदार हमीं थे

सौदा तिरी ज़ुल्फ़ों का गया साथ हमारे

मर कर भी न छूटे वो गिरफ़्तार हमीं थे

कल रात को देखा था जिसे ख़्वाब में तुम ने

रुख़्सार पे रक्खे हुए रुख़्सार हमीं थे

दिल-सोख़्ता थे चाहने वालों में तुम्हारे

लेकिन सबब-ए-गर्मी-ए-बाज़ार हमीं थे

कल कूचा-ए-क़ातिल में जो था ख़ल्क़ का मजमा

खाए हुए उस हाथ की तलवार हमीं थे

ऐ इश्क़-ए-मिज़ा कौन हमें देखने आता

आँखों में खटकते थे वो बीमार हमीं थे

तुर्बत में भी आँखें न हुईं बंद हमारी

ऐसे तिरे इक तालिब-ए-दीदार हमीं थे

ठंडे किए ग़ैरों के दिल और हम को जलाया

इक थे तो मोहब्बत के गुनहगार हमीं थे

मिलते ही लब-ए-यार से लब दिल निकल आया

मारा जिसे ईसा ने वो बीमार हमीं थे

तुम ग़ैरों से डर डर के लिपट जाते थे पैहम

कल रात को नालाँ पस-ए-दीवार हमीं थे

सब राज़ 'तअश्शुक़' से बयाँ होते थे दिल के

पहले तिरे इक महरम-ए-असरार हमीं थे

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In Hindi By Famous Poet Taashshuq Lakhnavi. is written by Taashshuq Lakhnavi. Complete Poem in Hindi by Taashshuq Lakhnavi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.