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कब अपनी ख़ुशी से वो आए हुए हैं - तअशशुक़ लखनवी कविता - Darsaal

कब अपनी ख़ुशी से वो आए हुए हैं

कब अपनी ख़ुशी से वो आए हुए हैं

मिरे जज़्ब-ए-दिल के बुलाए हुए हैं

कजी पर जो अफ़्लाक आए हुए हैं

उन आँखों के शायद सिखाए हुए हैं

कभी तो शहीदों की क़ब्रों पे आओ

ये सब घर तुम्हारे बसाए हुए हैं

किया है जो कुछ ज़िक्र मुझ दिल-जले का

पसीने में बिल्कुल नहाए हुए हैं

ज़रा फूल से पाँव मैले न होंगे

तुम आओ हम आँखें बिछाए हुए हैं

कहीं ख़ाक भी अब न बैठेगी अपनी

कि उन की गली से उठाए हुए हैं

गिरेगा ज़मीं पे न ख़ून-ए-शहीदाँ

अबस आप दामन उठाए हुए हैं

फ़क़त पास है उन के तीर-ए-निगह का

जो सीने से दिल को लगाए हुए हैं

जनाज़ा मिरा दोस्तो कल उठाना

कि वो आज मेहंदी लगाए हुए हैं

उन्हें पास है दिल हमारा मुक़र्रर

वही हम से आँखें चुराए हुए हैं

जो है घर के अंदर वही घर के बाहर

वो आँखों में दिल में समाए हुए हैं

मेरे ब'अद जाने के उतरेंगे क्यूँ-कर

ये कपड़े जो मेरे पिन्हाए हुए हैं

न हो सब्ज़ा-रंगों में क्यूँ उन की शोहरत

मिरे क़त्ल पर ज़हर खाए हुए हैं

मिरे ख़त के पुर्ज़े उड़ाए उन्हों ने

किसी के सिखाए पढ़ाए हुए हैं

ख़ुदा ज़ुल्फ़ से दिल जिगर को बचाए

बड़े पेच में दोनों आए हुए हैं

तड़प कर शब-ए-हिज्र में क्यूँ न रोऊँ

चमकती ही बर्क़ अब्र आए हुए हैं

'तअश्शुक़' वो जो चाहें बातें सुनाएँ

सर-ए-इज्ज़ हम तो झुकाए हुए हैं

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In Hindi By Famous Poet Taashshuq Lakhnavi. is written by Taashshuq Lakhnavi. Complete Poem in Hindi by Taashshuq Lakhnavi. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.