तअशशुक़ लखनवी कविता, ग़ज़ल तथा कविताओं का तअशशुक़ लखनवी
नाम | तअशशुक़ लखनवी |
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अंग्रेज़ी नाम | Taashshuq Lakhnavi |
वो खड़े कहते हैं मेरी लाश पर
वो इंतिहा के हैं नाज़ुक मैं सख़्त-जाँ हूँ कमाल
वहशत-ए-दिल ये बढ़ी छोड़ दिए घर सब ने
उठते जाते हैं बज़्म-ए-आलम से
तमाम उम्र कमी की कभी न पानी ने
शोला-ए-हुस्न से था दूद-ए-दिल अपना अव्वल
क़ाफ़िले रात को आते थे उधर जान के आग
पड़ गई क्या निगह-ए-मस्त तिरे साक़ी की
नज्द से जानिब-ए-लैला जो हवा आती है
मुंतज़िर तेरे हैं चश्म-ए-ख़ूँ-फ़िशाँ खोले हुए
मुझ से लाखों ख़ाक के पुतले बना सकता है तू
मुझ से क्या पूछते हो दाग़ हैं दिल में कितने
मुझे है फ़िक्र ख़त भेजा है जब से उस गुल-ए-तर को
मौज-ए-दरिया से बला की चाहिए कश्ती मुझे
मैं बाग़ में हूँ तालिब-ए-दीदार किसी का
कभी तो शहीदों की क़ब्रों पे आओ
जिस तरफ़ बैठते थे वस्ल में आप
जलूँगा मैं कि दिल उस बुत का ग़ैर पर आया
हम किस को दिखाते शब-ए-फ़ुर्क़त की उदासी
हर तरफ़ हश्र में झंकार है ज़ंजीरों की
गया शबाब पर इतना रहा तअल्लुक़-ए-इश्क़
देते फिरते थे हसीनों की गली में आवाज़
चिराग़-दाग़ मैं दिन से जलाए बैठा हूँ
चला घर से वो बहर-ए-हुस्न अल्लाह रे कशिश दिल की
बार-ए-ख़ातिर ही अगर है तो इनायत कीजे
बहुत मुज़िर दिल-ए-आशिक़ को आह होती है
बढ़ते बढ़ते आतिश-ए-रुख़्सार लौ देने लगी
अदम से दहर में आना किसे गवारा था
आमद आमद है ख़िज़ाँ की जाने वाली है बहार
याद-ए-अय्याम कि हम-रुतबा-ए-रिज़वाँ हम थे