क्या देखता है हाल के मंज़र इधर भी देख
क्या देखता है हाल के मंज़र इधर भी देख
माज़ी के नक़्श याद की दीवार पर भी देख
देखे हैं मेरे ऐब तो मेरा हुनर भी देख
सौदा है जिस में अपना अना का वो सर भी देख
ले काम मुझ से सख़्त उड़ानों का तू मगर
पहले मिरी निगाह मिरे बाल-ओ-पर भी देख
चेहरे के रंग-ओ-नूर को मेरा हुनर समझ
मुझ को मिरी नज़र से कभी झाँक कर भी देख
इक बार और बच के ज़माने की आँख से
हूँ देखने की चीज़ तो बार-ए-दिगर भी देख
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