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हिज्र में तेरे तसव्वुर का सहारा है बहुत - सय्यदा शान-ए-मेराज कविता - Darsaal

हिज्र में तेरे तसव्वुर का सहारा है बहुत

हिज्र में तेरे तसव्वुर का सहारा है बहुत

रात अँधेरी ही सही फिर भी उजाला है बहुत

माँग कर मेरी अना को नहीं दरिया भी क़ुबूल

और बे-माँग मयस्सर हो तो क़तरा है बहुत

ये तो सच है कि शब-ए-ग़म को सँवारा तुम ने

चश्म-ए-तर ने भी मिरा साथ निभाया है बहुत

बात करना तो कुजा उस से तआ'रुफ़ भी नहीं

उम्र भर जिस को हर इक हाल में सोचा है बहुत

जाने क्यूँ मुझ से वो कतरा के गुज़र जाता है

जिस ने ख़ुद मुझ को कभी टूट के चाहा है बहुत

हम से फ़नकार भी इस दौर में कम ही होंगे

हम ने दुनिया से तिरे ग़म को छुपाया है बहुत

वो कहीं मुझ से तग़ाफ़ुल का सबब पूछ न ले

शान आज उस ने मुझे ग़ौर से देखा है बहुत

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In Hindi By Famous Poet Syeda Shan-e-Meraj. is written by Syeda Shan-e-Meraj. Complete Poem in Hindi by Syeda Shan-e-Meraj. Download free  Poem for Youth in PDF.  is a Poem on Inspiration for young students. Share  with your friends on Twitter, Whatsapp and Facebook.