खिड़कियाँ खोल लूँ हर शाम यूँही सोचों की
फिर उसी राह से यादों को गुज़रता देखूँ
Faiz Ahmad Faiz
Wasi Shah
Rahat Indori
Allama Iqbal
Mir Taqi Mir
Jaun Eliya
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Parveen Shakir
Habib Jalib
Anwar Masood
Mohsin Naqvi
Love Poetry
Funny Poetry
Sad Poetry
Rain Poetry
Sharabi Poetry
Friends Poetry
(607) Peoples Rate This
निगाह ओ दिल में वही कर्बला का मंज़र था
ख़्वाबों की हक़ीक़त भी बता क्यूँ नहीं देते
हर-सू ख़ुशबू को फ़ज़ाओं में बिखरता देखूँ
कुछ ऐसा भी तो हो जाए कभी ऐसा करे कोई
मंज़िल मिले न कोई भी रस्ता दिखाई दे
ख़्वाब और नींदों का ख़त्म हो गया रिश्ता
मेहर-ओ-वफ़ा ख़ुलूस-ए-तमन्ना मिलन की आस
मुझ में आ कर ठहर गया कोई
कोई बतलाए माजरा क्या है
काश ऐसी भी कोई साअ'त हो
दर्द सीने में कहीं चीख़ रहा हो जैसे