ज़िंदगी से भी कब हुए मग़्लूब
अपने उस्लूब पर ही जीते थे
हर हवाले से मुनफ़रिद 'ग़ालिब'
दाढ़ी रखते शराब पीते थे
Anwar Masood
Javed Akhtar
Jaun Eliya
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Gulzar
Ahmad Faraz
Mir Taqi Mir
Parveen Shakir
Rahat Indori
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Friends Poetry
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अपने ज़र्फ़ अपनी तलब अपनी नज़र की बात है
उन का दरवाज़ा था मुझ से भी सिवा मुश्ताक़-ए-दीद
दर्द में लज़्ज़त बहुत अश्कों में रानाई बहुत
हम न्यूट्रल हैं ख़ारजा हिकमत के बाब में
असास
यक़ीं के भी क्या क्या हिजाबात हैं
जब्र ओ जहालत
दर्द में लज़्ज़त बहुत अश्कों में रा'नाई बहुत
ख़ुलासा ये मिरे हालात का है
हम ज़माने से फ़क़त हुस्न-ए-गुमाँ रखते हैं
बहन की इल्तिजा माँ की मोहब्बत साथ चलती है
दीवार रंग