ये हमारी वफ़ा की है मेराज
यार के पाँव के स्लीपर हैं
तेरे कूचे में यूँ खड़े हैं हम
जैसे हाकी के गोलकीपर हैं
Ahmad Faraz
Javed Akhtar
Rahat Indori
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Gulzar
Wasi Shah
Habib Jalib
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यक़ीं के भी क्या क्या हिजाबात हैं
मेरी बीवी क़ब्र में लेटी है जिस हंगाम से
मुझ से मत कर यार कुछ गुफ़्तार मैं रोज़े से हूँ
ज़िंदगी है मुख़्तलिफ़ जज़्बों की हमवारी का नाम
यूँ क़त्ल-ए-आम नौ-ए-बशर कर दिया गया
तन-आसानी नहीं जाती रिया-कारी नहीं जाती
उधार
उन का दरवाज़ा था मुझ से भी सिवा मुश्ताक़-ए-दीद
तहलील
असास
अपनी ख़बर नहीं है ब-जुज़ ईं क़दर मुझे
इक रेल के सफ़र की तस्वीर खींचता हूँ