जब ख़राबी सरों में आती है
फिर तबाही घरों में आती है
जैसे शब फ़िल्म देखने के ब'अद
नींद भी पिक्चरों में आती है
Anwar Masood
Parveen Shakir
Mir Taqi Mir
Mohsin Naqvi
Habib Jalib
Faiz Ahmad Faiz
Allama Iqbal
Javed Akhtar
Gulzar
Wasi Shah
Jaun Eliya
Rahat Indori
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Sharabi Poetry
Friends Poetry
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तजर्बात-ए-तल्ख़ ने हर-चंद समझाया मुझे
ख़ुलासा ये मिरे हालात का है
मुझ से मत कर यार कुछ गुफ़्तार मैं रोज़े से हूँ
मिलावट
दीवार रंग
दर्द में लज़्ज़त बहुत अश्कों में रानाई बहुत
फ़र्द
बहन की इल्तिजा माँ की मोहब्बत साथ चलती है
यूँ क़त्ल-ए-आम नौ-ए-बशर कर दिया गया
तूफ़ाँ नहीं गुज़रे कि बयाबाँ नहीं गुज़रे
ख़ुदा-बंदा
हम ज़माने से फ़क़त हुस्न-ए-गुमाँ रखते हैं